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बात है सतत नैतिकता और संस्कृति एवं उनका संबंध सतत विकास लक्ष्य से

आज का समाज प्रगति, आधुनिकता और तकनीक की तीव्र दौड़ में जहां नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, वहीं गहरे स्तर पर नैतिकता और संस्कृति के ताने-बाने का क्षरण भी साफ दिखाई देता है। यह क्षरण सबसे अधिक चिंता का विषय तब बन जाता है जब इसके दुष्प्रभावों से हमारी नई और आने वाली पीढ़ी प्रभावित हो रही है।


नैतिकता की गिरावट

हमारे संस्कार, आदर्श और नैतिक मूल्य सदियों से हमारी पहचान रहे हैं। बच्चों में जो ईमानदारी, दया, सहिष्णुता, और कर्तव्यनिष्ठा के बीज बचपन से बोए जाते थे, वे अब कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। आज की आपाधापी सफल होने, पैसा कमाने और प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने की रेस में बच्चों के व्यवहार व सोच में संवेदना, कृतज्ञता, और सामाजिक जिम्मेदारी कम होती जा रही है। माता-पिता, शिक्षक और समाज बच्चों को केवल भौतिक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराने में जुटे हैं, नैतिक शिक्षा और व्यावहारिक जीवन-मूल्य अक्सर नजरंदाज हो जाते हैं।

सांस्कृतिक विरासत से दूरी

भारतीय संस्कृति का मूल आधार था "वसुधैव कुटुम्बकम्", त्याग, सह-अस्तित्व और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता। लेकिन विदेशी जीवनशैली, भोगवाद, पश्चिमी प्रभाव और डिजिटल युग के अंधानुकरण में युवा वर्ग सांस्कृतिक धरोहर से कटता जा रहा है। पारंपरिक भाषा, कला, त्योहार, पूजा-पाठ, पारिवारिक संस्कार धीरे-धीरे केवल औपचारिकता बनते जा रहे हैं। सामाजिक उत्सव, सामूहिकता, और साझा जिम्मेदारी का जो भाव था, उसकी जगह दिखावा, व्यक्तिगत उपलब्धियां और अलगाव ले रहे हैं।


परिणाम

  • परिवार और समाज में रिश्तों का क्षरण, संवादहीनता और तनाव बढ़ रहा है।

  • नैतिक गिरावट के कारण अपराध, भ्रष्टाचार, असहिष्णुता और मानसिक तनाव युवाओं में बढ़ रहे हैं।

  • सांस्कृतिक विरासत के सिमटने से पहचान और गर्व की भावना कमजोर पड़ती जा रही है।



तो क्या है  सतत नैतिकता और सतत संस्कृति ? 

सतत नैतिकता उन सिद्धांतों को दर्शाती है जो न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य के लिए भी कल्याणकारी हैं।

  • इसमें ईमानदारी, सहयोग, न्याय और जिम्मेदारी जैसी सार्वभौमिक मान्यताओं को बढ़ावा दिया जाता है।

  • यह सुनिश्चित करती है कि नैतिक निर्णयों का असर केवल आज नहीं बल्कि आगे आने वाले समय पर भी सकारात्मक रहे।


सतत संस्कृति क्या है

सतत संस्कृति उन परंपराओं, विचारों और व्यवहारों को दर्शाती है, जो पर्यावरण, समाज और भविष्य के प्रति संवेदनशील हैं।

  • इसमें स्थानीय भाषाओं, कलाओं, खानपान और रीति-रिवाजों को संरक्षित रखना शामिल है।

  • सतत संस्कृति यह भी सुनिश्चित करती है कि विकास और आधुनिकीकरण के बीच स्थानीय पहचान, जैव विविधता और इतिहास की रक्षा हो सके।


क्यों जरूरी है सतत नैतिकता और संस्कृति

  • सतत नैतिकता और संस्कृति से सामाजिक विश्वास, सामुदायिक सहयोग और पर्यावरणीय संतुलन बनता है।

  • यह न केवल वर्तमान समस्याओं—जैसे प्रदूषण, सांस्कृतिक क्षरण, और असमानता—को हल करने में मदद करती है, बल्कि एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की नींव भी रखती है।


उदाहरण

  • जैसे किसी संस्थान में पारदर्शिता और जिम्मेदार व्यवसाय का पालन सतत नैतिकता है।

  • किसी गाँव की पारंपरिक जल संरक्षण तकनीक का प्रयोग और हस्तशिल्प को बढ़ावा देना सतत संस्कृति है।

सतत नैतिकता और संस्कृति का पालन समाज को स्थायी, समावेशी और खुशहाल बनाने में मदद करता है।

सतत नैतिकता और सतत संस्कृति तथा सतत विकास लक्ष्य (SDGs) के बीच अक्सर समन्वय की आवश्यकता होती है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर कई बार इनमें विरोधाभास भी सामने आते हैं।


सतत नैतिकता और सतत संस्कृति

सतत नैतिकता तथा संस्कृति का केंद्र मानव जीवन में मूल्यों की रक्षा, परंपराओं के संवर्धन व सामाजिक संतुलन बनाए रखना है। ये समाज में ईमानदारी, सह-अस्तित्व, प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, और सामाजिक उत्तरदायित्व पर जोर देते हैं।


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