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Showing posts from October, 2025

बात है सतत नैतिकता और संस्कृति एवं उनका संबंध सतत विकास लक्ष्य से

आज का समाज प्रगति, आधुनिकता और तकनीक की तीव्र दौड़ में जहां नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, वहीं गहरे स्तर पर नैतिकता और संस्कृति के ताने-बाने का क्षरण भी साफ दिखाई देता है। यह क्षरण सबसे अधिक चिंता का विषय तब बन जाता है जब इसके दुष्प्रभावों से हमारी नई और आने वाली पीढ़ी प्रभावित हो रही है। नैतिकता की गिरावट हमारे संस्कार, आदर्श और नैतिक मूल्य सदियों से हमारी पहचान रहे हैं। बच्चों में जो ईमानदारी, दया, सहिष्णुता, और कर्तव्यनिष्ठा के बीज बचपन से बोए जाते थे, वे अब कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। आज की आपाधापी सफल होने, पैसा कमाने और प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने की रेस में बच्चों के व्यवहार व सोच में संवेदना, कृतज्ञता, और सामाजिक जिम्मेदारी कम होती जा रही है। माता-पिता, शिक्षक और समाज बच्चों को केवल भौतिक सुख-सुविधाएँ उपलब्ध कराने में जुटे हैं, नैतिक शिक्षा और व्यावहारिक जीवन-मूल्य अक्सर नजरंदाज हो जाते हैं। ​ सांस्कृतिक विरासत से दूरी भारतीय संस्कृति का मूल आधार था "वसुधैव कुटुम्बकम्", त्याग, सह-अस्तित्व और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता। लेकिन विदेशी जीवनशैली, भोगवाद, पश्चिमी प...